सुप्रीम कोर्ट की तमिलनाडु राज्यपाल को फटकार, कहा- गवर्नर के पास वीटो का अधिकार नहीं
आरएल रवि के 10 अहम विधेयकों को रोकने के फैसले को गैरकानूनी और मनमाना बताया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल, किसी बिल पर अपनी सहमति रोके रखने के बाद, उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025। तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि के दस विधेयकों पर सहमति रोकने के फैसले को अवैध बताया है। अदालत ने कहा कि राज्यपाल सहमति रोके बिना विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं कर सकते। अदालत ने राज्यपाल के फैसले को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला स्टालिन सरकार के लिए बड़ी जीत है। बता दें कि राज्य विधानसभा द्वारा पास किए गए कई विधेयकों को राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी थी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसमें राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े विधेयक भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट के जज जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि उनके सामने यह सवाल था कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास क्या विकल्प हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब राज्य विधानसभा किसी विधेयक पर दोबारा विचार करके उसे राज्यपाल के पास भेजती है, तो उन्हें उसे मंजूरी देनी चाहिए। राज्यपाल केवल तभी मंजूरी देने से मना कर सकते हैं, जब विधेयक बिल्कुल ही अलग हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सभी 10 विधेयक राज्यपाल के पास दोबारा भेजे जाने की तारीख से ही मान्य माने जाएंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब किसी काम को करने की कोई समय सीमा नहीं होती है, तो उसे उचित समय के भीतर पूरा करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के दो कमेंट
1. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना है। यह कार्रवाई रद्द की जाती है। राज्यपाल की सभी कार्रवाई अमान्य है।
2. बेंच ने कहा कि राज्यपाल रवि ने भले मन से काम नहीं किया। इन बिलों को उसी दिन से मंजूर माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने बिलों को पास करके दोबारा राज्यपाल को भेजा गया था।
सुप्रीम कोर्ट के 2 निर्देश
1. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को निर्देश दिया कि उन्हें अपने विकल्पों का इस्तेमाल तय समय-सीमा में करना होगा, वरना उनके उठाए गए कदमों की कानूनी समीक्षा की जाएगी।
2. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल बिल रोकें या राष्ट्रपति के पास भेजें, उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा। विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल की शक्तियों को कमजोर नहीं कर रहा, लेकिन राज्यपाल की सारी कार्रवाई संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए।
बिल पर राज्यपाल के 4 अधिकार
संविधान का आर्टिकल 200 कहता है कि जब विधानसभा कोई विधेयक राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास 4 विकल्प होते हैं-
1. मंजूरी दे सकते हैं
2. मंजूरी रोक सकते हैं
3. राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं
4. पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेज सकते हैं
विधानसभा बिल को दोबारा पास कर देती है, तो फिर राज्यपाल मंजूरी नहीं रोक सकते। हालांकि, अगर राज्यपाल को लगता है कि बिल संविधान, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों या राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है, तो वह उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
राज्यपाल आरएन रवि ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पारित 12 में से 10 बिलों को 13 नवंबर 2023 को बिना कारण बताए विधानसभा में लौटा दिया था और 2 बिलों को राष्ट्रपति को भेज दिया था।
राज्यपालों को समय सीमा के भीतर फैसला लेना चाहिए'
अदालत ने कहा कि उनके पास यह अधिकार है कि वे किसी काम को एक निश्चित समय के भीतर पूरा करने का निर्देश दे सकते हैं। अनुच्छेद 200 के तहत समय सीमा तय करना इसलिए जरूरी है ताकि किसी भी तरह की निष्क्रियता को कम किया जा सके। यानी, राज्यपाल किसी विधेयक को बेवजह लटका कर न रखें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि विधानसभाओं द्वारा पास किए गए विधेयकों पर राज्यपालों को समय सीमा के भीतर फैसला लेना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार एक महीने के भीतर विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने का फैसला लेना चाहिए। साथ ही, विधानसभा द्वारा पास किए गए विधेयकों पर सहमति न देने का फैसला तीन महीने के भीतर लेना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किए अधिकार
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों को स्पष्ट किया है। कोर्ट ने यह भी बताया है कि राज्यपाल को किस तरह से विधेयकों पर कार्रवाई करनी चाहिए। अब देखना यह है कि इस फैसले का तमिलनाडु की राजनीति पर क्या असर होता है। यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के दिनों में कई राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव देखने को मिला है। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इन टकरावों को कम करने में मदद कर सकता है।
